रोजाना भास्कर (जालंधर/फिल्लौर): लोग क्या कहेंगे… के डर ने नवरात्र के पहले दिन पैदा हुई बच्ची की जान लेने की कोशिश की। मामला फिल्लौर के कुतबेवाल गांव का है। यहां 18 दिन पहले अपने पोते के जन्म की खुशियां मना रही दादी को रविवार देर रात अचानक प्रसव पीड़ा शुरू हो गई। वह कमरे में अकेले थी। उसने बच्ची को जन्म दिया।
अगले दिन जब लोग इकट्ठा हुए तो दादी ने चुपके से बेटी को कपड़े में लपेटा और बाहर निकल गई। घर वालों ने जब कमरे में नवजात को नहीं देखा तो हड़बड़ी मच गई। सभी बुजुर्ग को ढूंढने लगे। गांव में ही उन्होंने बुजुर्ग को पकड़कर बच्ची को बचा लिया। परिवार ने कहा- बुजुर्ग की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है इसलिए बच्ची को एक ऐसे परिवार को गोद दिया गया जिसके पास अपनी औलाद नहीं थी।
47 साल की बुजुर्ग महिला के पहले से दो बेटे हैं। बड़े बेटे की शादी हो चुकी है। अभी 18 दिन पहले ही उसके घर बेटे का जन्म हुआ था। दादी बनी बुजुर्ग इस खुशी में मिठाइयां बांट रही थी। इस बीच सोमवार अल सुबह अचानक आधी रात को बुजुर्ग को प्रसव पीड़ा शुरू हो गई।
ढाई बजे के करीब बच्ची के रोने की आवाज सुन बेटा और नई बहू भीउठ गए। उन्हें लगा कि उनका बेटा जग गया है। फिर पाया कि आवाज बुजुर्ग के कमरे से आ रही है। वह वहां गए तो बुजुर्ग को देखकर हैरान हो गए।
बुजुर्ग कुछ बता नहीं रही थी। बच्चे के ऊपर भी उसने कपड़ा डाल दिया था। रोने की आवाज सुन जब कपड़ा हटाया तो बेटा और बहू हैरान हो गए। बेटे गांव से फौरन दाई को बुला लाया। दाई ने मौके पर आकर स्थिति संभाली और सबसे पहले गर्भनाल काटी।
इस दौरान बुजुर्ग दर्द से तड़पती रही। दाई ने बच्ची को नहलाया और कपड़े में लपेटकर परिवार को सौंप दिया। अगले दिन जब बुजुर्ग द्वारा बेटी को जन्म देने की खबर गांव में फैली तो लोग घर में बधाइयां देने के लिए जुटने लगे। इससे बुजुर्ग डिप्रेशन में आ गई जिसके चलते ही उसने बच्ची को खत्म करने का यह भयावह कदम उठाना चाहा।
परिवार वालों ने बताया कि बुजुर्ग बच्ची को जन्म देने से सदमे में थी इसलिए उसने इसके बारे में किसी को नहीं बताया। परिवार का कहना है कि बुजुर्ग का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था।
इसलिए उसे पता ही नहीं चल पाया कि वह कब गर्भवती हो गई थी। बुजुर्ग नवजात बच्ची को संभालने की स्थिति में नहीं थी। ऐसे में एक परिवार को ढूंढ बच्ची उन्हें पालने के लिए दे दी गई।