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लंदन का मरीज HIV इन्फेक्शन से पूरी तरह मुक्त हुआ, अबतक का दूसरा केस

नई दिल्ली. हाल ही में लंदन में रहने वाला एड्स का एक मरीज स्‍टेम सेल ट्रांसप्‍लांट के बाद एचआईवी इन्‍फेक्‍शन से पूरी तरह मुक्‍त हो गया। यह खबर दुनिया भर में एड्स के मरीजों के लिए उम्‍मीद की एक किरण बनकर आई है। इससे करीब 12 साल पहले बर्लिन के एक मरीज टिमोथी ब्राउन का भी इसी तरह से इलाज किया गया और उसे भी AIDS (एक्वायर्ड इम्यून डिफिसिएंशी सिन्ड्रोम) वायरस से मुक्‍त करार दिया गया था। लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक और एड्स वायरस पर शोध कर रहे डॉक्‍टरों ने आगाह किया है कि अभी यह कहना गलत है कि एड्स का इलाज खोज लिया गया है। हां यह जरूर है कि इस घटना से एड्स के वायरस का इलाज खोजने की दिशा में जरूरी प्रेरणा मिली है।

दुनिया भर में एड्स

1987 में एड्स के पहले मामले के बाद अबतक करीब 3.5 करोड़ लोग एड्स की वजह से अपनी जान गवां चुके हैं। UNAIDS के मुताबिक, 2017 में दुनिया भर में एड्स के करीब 3.7 करोड़ मरीज थे। इन मरीजों में से करीब 18 लाख 15 साल से कम उम्र के बच्‍चे हैं जो अफ्रीकी महाद्वीप के उप सहारा इलाके में रहते हैं। अकेले भारत में ही 2015 में 21 लाख लोगों को एड्स था।

लंदन पेशेंट की घटना में क्‍या है खास

लंदन के इस अनाम मरीज का एड्स वायरस से मुक्‍त होना पहली घटना नहीं है। 2007 में जर्मनी के मरीज टिमोथी ब्राउन का इसी तरह इलाज हुआ और वह भी एड्स से मुक्‍त हो गया। तब से वैज्ञानिक इसी प्रयोग को दोहराने की कोशिश कर रहे थे। लंदन के इस मरीज के ठीक होने के बाद ब्राउन के इलाज के दौरान जो तथ्‍य पता चले थे उनकी पुष्टि हो गई है।

दोनों के इलाज में समानता 

दोनों मरीजों को कैंसर हो गया था जो एड्स में आम है। इन दोनों को ही कैंसर के इलाज के लिए बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट या स्‍टेम सेल ट्रांसप्‍लांट का तरीका अपनाया गया। स्‍टेम सेल हमारे शरीर की वे खास कोशिकाएं होती हैं जिनमें शरीर की अलग-अलग कोशिकाओं में विकसित होने की खूबी होती है। ये हमारी बोन मैरो या अस्थि मज्‍जा में होती हैं। स्‍वस्‍थ बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के बाद शरीर में स्‍वस्‍थ कोशिकाएं बनने लगती हैं और कैंसर ग्रस्‍त कोशिकाएं खत्‍म हो जाती हैं। लेकिन यह प्रक्रिया बहुत जोखिम भरी, महंगी और तकलीफदेह है।

CCR5 का कमाल

टिमोथी ब्राउन को जिस शख्‍स ने बोन मैरो डोनेट किया था, उसके शरीर में एक अनोखी आनुवांशिक गड़बड़ी थी। यह गड़बड़ी उसकी श्‍वेत रक्‍त कोशिकाओं या वाइट ब्‍लड सेल्‍स की सतह पर मौजूद रिसेप्‍टर मॉलिक्‍यूल CCR5 के जीन में थी। इस गड़बड़ी की वजह से उसे कोई परेशानी तो नहीं हुई उलटे फायदा हुआ। एचआईवी वायरस (ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंशी वायरस) वाइट ब्‍लड सेल पर हमला बोलने के लिए CCR5 के जरिए उसके भीतर जाते हैं। लेकिन गड़बड़ी या म्‍यूटेशन वाले CCR5 की वजह से वे ऐसा करने में नाकामयाब रहते हैं और ऐसे व्‍यक्ति को एचआईवी इन्‍फेक्‍शन नहीं हो सकता। 

एक और सुराग

बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट के बाद टिमोथी ब्राउन और लंदन के मरीज को ‘ग्राफ्ट वर्सेज होस्‍ट’ बीमारी हो गई थी। इसमें नया बोनमैरो मरीज के शरीर को दुश्‍मन समझकर उसकी कोशिकाओं के खिलाफ काम करने लगता है। यही स्थिति लंदन के मरीज के साथ भी हुई। प्रयोग पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि बहुत मुमकिन है कि ‘ग्राफ्ट वर्सेज होस्‍ट’ बीमारी ने एड्स वायरस का सफाया कर दिया हो।

इसकी सीमाएं हैं

लेकिन यह आनुवांशिक गड़बड़ी बहुत दुर्लभ है, ऐसे डोनर खोज पाना बहुत मुश्किल काम है। अगर ऐसा डोनर मिल भी गया तो बोन मैरो ट्रांसप्‍लांट में बहुत जोखिम है। टिमोथी ब्राउन को महीनों तक कई कॉम्‍प्‍लिकेशंस का सामना करना पड़ा। उन्‍हें एक बार तो मेडिकल कोमा तक में रखने की नौबत आ गई थी।

पर एक नई उम्‍मीद मिली है

लंदन के मरीज का इलाज करने वाली टीम के प्रमुख वायरोलॉजिस्‍ट रविंद्र गुप्‍ता का कहना था, ‘ यह कहना ठीक नहीं है कि हमने एड्स का इलाज खोज लिया है लेकिन यह जरूर है कि हमें पता चल गया है कि एड्स वायरस को पूरी तरह खत्‍म किया जा सकता है।’ इसके लिए बोनमैरो ट्रांसप्‍लांट की बजाय CCR5 में म्‍यूटेशन करने पर ध्‍यान दिया जा रहा है। इसलिए लंदन के मरीज के इलाज में कामयाबी के बाद दुनिया भर के एड्स के मरीज उम्‍मीद कर सकते हैं कि एक दिन उन्‍हें एड्स के वायरस के साथ नहीं जीना पड़ेगा। 

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