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नई दिल्ली/Harish Sharma
आ रहा है नया आपराधिक कानून : पिछले साल भारत सरकार ने आपराधिक न्याय प्रणाली में बड़े बदलाव किए और तीन आपराधिक कानून बनाए। 1860 के आईपीसी को भारतीय न्यायपालिका अधिनियम, सीआरपीसी की जगह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह भारतीय साक्ष्य संहिता अधिनियम आएगा।
ये तीनों कानून 1 जुलाई से लागू हो रहे हैं। इन कानूनों में कई नई धारा जोड़ी गई हैं। खासकर भारतीय नागरिक संहिता के लागू होने के बाद अपराधियों की मुश्किलें काफी बढऩे वाली हैं।
जाने कब हाईकोर्ट में नहीं होगी अपील
भारतीय नागरिक संहिता की धारा 417 के तहत कुछ मामलों में दोषी पाए जाने पर अपराधी उच्च न्यायालय में नहीं जा सकेंगे। अगर हाई कोर्ट ने किसी अपराधी को 3 महीने से कम की कैद या 3,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा सुनाई है, तो उसे हाई कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।
इसके साथ ही अगर सत्र न्यायालय तीन महीने से कम की सजा और 200 रुपये का जुर्माना लगाता है तो उच्च न्यायालय में अपील नहीं की जा सकेगी। साथ ही अगर मजिस्ट्रेट किसी अपराध के लिए 100 रुपये का जुर्माना लगाता है तो अपराधी इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील नहीं कर सकेगा।
सम्पत्ति जब्त करने और कुर्क करने का कानून सख्त
भारतीय नागरिक संहिता की धारा 107 के तहत किसी भी अपराधी की संपत्ति जब्त करने और कुर्क करने के कानून का सख्ती से पालन कराया जाएगा। धारा 107 (1) के तहत आपराधिक गतिविधियों से अर्जित आय से अधिक संपत्ति या धन जब्त किया जा सकेगा। इसके लिए एसएसपी और पुलिस आयुक्त न्यायालय से कुर्की आदेश ले सकते हैं।
धारा 107 (2) के तहत न्यायालय अपराधी को कारण बताओ नोटिस जारी करेगा। आरोपी को 14 दिन के भीतर जवाब देना होगा। इसके बाद मजिस्ट्रेट तय करेंगे कि संपत्ति कुर्क की जाएगी या नहीं। अगर आरोपी 14 दिन के भीतर जवाब नहीं देता और न्यायालय में पेश नहीं होता तो न्यायालय संपत्ति जब्त करने का आदेश दे सकता है।
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इतना ही नहीं, मजिस्ट्रेट अपराधी की संपत्ति के बंटवारे का भी आदेश दे सकता है। यह प्रक्रिया 60 दिनों के भीतर पूरी हो जाएगी। धारा 107(6) के तहत अगर बंटवारे के बाद अपराधी की संपत्ति बच जाती है और कोई दावेदार नहीं है तो संपत्ति पर सरकार का स्वामित्व होगा।
अब कैदियों को कुछ राहत
भारतीय नागरिक संहिता में कैदियों के लिए भी नए कानून बनाए गए हैं। धारा 479 के तहत अगर कोई विचाराधीन कैदी अपनी सजा का एक तिहाई हिस्सा काट चुका है तो उसे जमानत पर रिहा किया जा सकता है। इसी तरह आजीवन कारावास की सजा पाए अपराधी को भी 7 साल की सजा में बदला जा सकता है।