रोजाना भास्कर, जालंधर (हरीश शर्मा). मकसूदां मंडी को अलग करके बनाई गई प्रतापपुरा मंडी आजकल राजनीति का अखाड़ा बनी हुई है। कुछेक आढ़ती अपना रौब बनाने के लिए मंडी के अधिकारियों और पंचायत तक को अपना मोहरा बना रहे हैं। मंडी में आढ़तियों के साथ धोखा भी किया जा रहा है। कभी मंडी में सरपंच का पति आकर अनाउंसमेंट करता रहता है तो कभी मंडी में मोल-तोल को लेकर विवाद करवाए जा रहे हैं। कुछ दिन पहले फड़ी वालों ने आढ़तियों का सामान उठाकर फेंक दिया कि आप पांच किलो से कम माल नहीं बेच सकते। अब जब मंडी में ग्राहक ही दो किलो का है तो आढ़ती बोरे रखकर क्या करेंगे। जब तक मंडी चल नहीं पड़ती, ग्राहक आने शुरू नहीं हो जाते, तब तक ज्यादा माल बेचने वाले हालात ही नहीं हैं। मजबूरी में आढ़तियों को कम माल बेचना पड़ रहा है। जो हालात यहां चल रहे हैं, उनसे मंडी अधिकारी भी वाकिफ हैं। वे तो कुछ नहीं बोल रहे लेकिन राजनीति चमकाने वाले लोग मंडी में आकर आढ़तियों को धमका कर चले जाते हैं। इनमें कोई और नहीं फड़ी वाले ही हैं, जिनका आढ़तियों को धमकाने का कोई अधिकार नहीं है। इसके अलावा मंडी में हफ्ता वसूलने वाले भी आने लगे हैं। मंडी अधिकारी के माल नोट करने के बाद वे आ धमकते हैं और आढ़तियों के पास जाकर उनसे पूछते हैं कि आज क्या-क्या बेचने लाए हैं। हालांकि उनके हाथ में पकड़ी डायरी पर वे ज्यादा कुछ नोट नहीं करते लेकिन शरीफ आढ़तियों को धमकाने या अपनी पहचान दिखाने के लिए वे ऐसा करते हैं।